Common Sense और महारे बावली बूच? या? महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?
"महारे बालकां धौरअ थोड़ा बहुत पीसा भी सै, अर थोड़ी बहुत ज़मीन भी। करोड़ों के मालिक होते हुए भी रहते हैं गई-गुजरी सदियों में।"
सुना-सुना सा लग रहा है? चलो करोड़ों के ना, लाखों के मालिक तो होंगे? मगर, उनकी सोच को कौन बदलने आएगा? उसपै, बावली बूच बणाण आले श्याणे?
Water Purifier
जैसे बाहर के या गंदे पानी से कोई खतरा नहीं, चाहे उसके नाम पे राजनीती अपने उफान पे हो? घर पे water purifier हो तो भी चलाना नहीं? क्यों? बावली बूच किह नै कहा ए करैं?
आपके ये नेता भी पीते हैं, कभी ऐसे ही कहीं का भी कोई भी पानी? नौटंकी चाहे वो कैसी भी करलें? हमारे गरीब नेता (गरीब नेता?) फिर गंदे पानी को मुद्दा कैसे बनाएँगे?
झाड़ू?
भारत की राजनीती की सुनहरी, सफ़ेद और काली झाड़ू? और भी कितने ही रंग होंगे? अपने यहाँ वो कुछ भी प्रयोग करें, मगर? मगर बावली-बूचां के अड्डा पै तो? राम, राम, राम। फिर अपने नेताओं की राजनीती के अहम मुद्दे क्या होंगे?
ब्लाह जी वो तो फेर भी ढूँढ लावेंगे।
कैसे? बिजली के एप्लायंस एक के बाद एक ख़राब करके?
वैसे हम हैं मजेदार लोग। हमें कोई भी insecure करके, अपना कैसा भी आदमी हमारे घर घुसा दे। बताओ ये दिक्कत, वो दिक्कत, काम वाली तो चाहिए? घर वाली नहीं, काम वाली? अब वो काम वाली घर का कैसा भी बेड़ा गरक करै चाहे? मगर छोटे-मोटे रोजमर्रा के एप्लायंस अपडेट नहीं करेंगे? भला, खराब होण पे ठीक कैसे होंगे? बताओ? आज ज्यादातर घरों में गाड़ियाँ हैं। बैलगाड़ी क्यों नहीं खरीद लेते? गाड़ी खराब होने पे ठीक थोड़े ही होती हैं? और घर के ये छोटे-मोटे एप्लायंस तो 20 -30000 से शुरु हो जाते हैं। कुछ तो शायद इससे भी कम।
आप पढ़ाई में ठीक ठाक हैं? या शायद आप का बच्चा?
वो आपको पढ़ाई से डरना सीखा देंगे और किताबें, वो तो बिगाड़ती हैं? ना ज्यादा खुद पढ़ना और ना अपने बच्चों को पढ़ने देना?
लैपटॉप?
अरै कोई काम ना सै इसका। एक तरफ राख भाई इह नै। इह तै बढ़िया तै ताश, हुक्का और कबूतर जैसे खेल सैं? थोड़ा और आग ए बढ़ना हो तै दारु, जुआ और ड्रग्स लेणा शुरु कर दो।
ऑटोमैटिक वॉशिंग?
फेंकों इह नै या तोड़ दो। या तो अमरीकन सै। विदेसी कंपनी सै भाई यो। देसी लावांगे।
एंडी सैमसंग ले आए। वा तै इनकै बाप नै बणा राखी सै? घणी देसी? घर मैं धरी नै विदेसी कै नाम पै तुड़वा दो। अर देसी कै नाम पै पीसे फालतू पड़े हांड़े सैं?
डिश वॉशर?
अर के डिश-फिश लाग री सै? घणा पाणी लेगी और इतनी महँगी। क्यों चक्कर मैं पड़ै। लुगाई-पताई के करैंगी फेर? ना तै काम आली ला ले। थोड़े सै मैं कर देगी। महँगी? कितनी?
बावली बूचाँ नै ना बेरा ज्यादातर नए अपडेट या मॉडल पानी ही नहीं बल्की बिजली भी कम प्रयोग करैं सैं। अर ज्यादातर तकरीबन उतने ही महँगे सैं, जितने पुराने मॉडल। कोई खास फर्क नहीं।
मानसून वेड्डिंग।
काम आली ब्याह लाए भाई, भकाई मैं? AI आल्याँ नै भी ड्रामें का कती नास-सा तार दिया। दे झमा-झम। अर ऊप्पर तै बिजली, कती कड़ा कड़ कर री। ब्ला डुबोअगा। भुण्डा अँधेरा कर दिया डाकियाँ नै। अर आड़ै बे-बे हर उलझा दी, ब्ला आपणअ आले अंगूंठे अर ऊँगली लावान्वागें। रै वो थापे कै नाम पै। ब्ला माहरै आले खास छपाई के पेपर पै लावान्वागें।
कती मानसून वेड्डिंग बनादि?
वैक्यूम क्लीनर?
भाई फेर ब्याह ना होवै। आपणी झाड़ू ए बढ़िया सै। बता, इन नेता-वेतां के तो बेरा ए ना कै, कै ब्याह हो ज्या सैं। साले एक तै लेटेस्ट एक ऑटोमैटिक मॉडल धर रे सैं आपणै घराँ। के गाडी, अर के घर के छोटे-मोटे एप्लायंस। अर ब्ला थारे फेर ब्याह ना होंवें? बावली बुचो, कैदे वै उल्टा तै नाश ना करण लाग रे? एक बै इतना तै सोच लो। जित घणी सुविधा हों, सब ठीक-ठाक हो। मिलजुल कै सारे ढंग सर रहते हों, उड़ै ब्याह बढ़िया ढाल के होया करैं या बावली बूच बणे अर पिछड़े रहण पै? ब्ला घराँ धरा भी प्रयोग ना करना। अशुभ बताया?
बैड, मैट्रेस्स
अरै यो माँ का बैड मैट्रेस्स उड़े बैठक मैं धर, सांडा खातर। चारपाई बढ़िया हो सै बूढ़्यां खातर।
के कर लो इसा-इसां का? कोए आपण माँ-बाप नै सुख-सुविधा देते ना हारते। अर इण झकोईयाँ धौरए, इसे-इसे जानवर आवैं सैं, जो इनका भूंड़ां ए भूंडा चाहवें? जिह आदमी नै इतने सालां मैट्रेस्स पै सोण की आदत पड़ री हो, वो बुढ़ापे मैं चारपाई पै कित-कित दर्द तै टस-टस करैगा?
ना करए भाई, महारए आले तै आपणे लाडलां धोरै, जुकर राख लें, नू ए चुपचाप पड़े रहं। कोए इण बावली बूचाँ नै कुकरै भका जा। ऊँ चाहे पाहं दबवालो, किमै करवालो, किमै मँगवा लो। पर भकाई पै ब्ला भूंडे घणे। करे-धरे पे पानी फेर दें।
इसे-इसे, रोज-रोज के कितने अ किस्से-कहाणी लिख लो।
ऐसे से ही हाल हमारे पढ़े लिखे बड़े-बड़े संस्थानों के हैं। खुद वो कैसे भी घरों में रहें। अपने ऑफिसों में कितने ही लेटेस्ट उत्पाद प्रयोग करें। मगर, अपने साफ़-सफाई करने वाले कर्मचारियों या और भी कितने ही छोटे-मोटे कर्मचारियोँ को वही पुराने जमाने के झाड़ू मॉडल और ठेकेदारी शोषण प्रथा में उलझाए मिलेँगे। आखिर हमारी राजनीतिक पार्टियों के मॉडल यही हैं, अपनी जनता के लिए।
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