Wednesday, February 19, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 29

 ब्लाह भाई यो किसा खेल, "दिखाणा सै, बताना नहीं"? यो तो भुण्डा, अर फूहड़ सॉंग लाग्या। कोए बात होई, या गोली ले, अर बारिश सुरु? या ले, अर पीरियड शुरु? या ले, अर दर्द शुरु? दर्द होए पाछैय, आदमी कित जागा? जै डॉक्टर धोरै ना जागा तै? अर वें कसाई फेर कमई करो उह आदमी गेल? यो तो भोत भुँडी दुनियाँ। पहलयॉँ नूं कहा करते, अक साच वो हो सै, जो आपणी आँख्या देखा अर आपणे काना सुना। यूँ तै जो दिखअ सै, अर सुनै सै, वो भी के बेरा कितणा साच सै? 

महारे बावली बुचो, अक भोले आदमियों? ये तै ABCD सैं, इस खेल की, थारे जीसां नै समझाण खातर। घणे शयाणे, घणे पढ़े-लिखे, अर कढ़े आदमियाँ धौरे तै, आदमियाँ नै मानव रोबॉट क्यूकर बणाया करै, वा भी कला है। अर रोज दुनियाँ का कितना बड़ा हिस्सा बन रया सै। जिसमैं जरुरी ना कम पढ़े लिखे ए हों। आच्छे खासे पढ़े-लिखे भी रोज बणअ सैं। म्हारे सिस्टम का या समाज का कितना बड़ा हिस्सा ऑटोमेशन पे है। मतलब, एक बार जो मशीन में फीड कर दिया, उड़ै तहि का काम आपणै आप होवैगा। बस वो सेटिंग करणी सैं। अर वो भी दूर बैठे रिमोट कण्ट्रोल सी दुनिया के किसी हिस्से से कर दो। समाज को कण्ट्रोल करने का जो मैन्युअल हिस्सा है, उस खातर इन राजनितिक पार्टियों की सुरँगे हैं। 

जुकर कोए कह विजय मोदी का साला लाग्य सै। विजय भी भड़क जागी, अक बतमीज़ां नै बोलण की तमीज ना सै। उसने के बेरा इसा भी कोय मोदी उसके आसपास अ हो सकै सै। फेर बेरा पाट्य यो विजय तो लड़का था, ना की लड़की। और वो विजय काफी धार्मिक इंसान भी बताया। यूँ अ और भी विजय नाम गिणां जांगे, वो भी लड़के। या शायद एक आध लड़की भी। और उनकी अजीबोगरीब कहाणी भी सुणा देंगे। यहाँ तक कुछ नहीं समझ आता, की लोगबाग इतना क्यूँ खामखाँ फेंकम-फेंक लाग रे सैं? 

थोड़ा बहुत समझ आएगा, जब उन कहानियों को थोड़ा और जानने की कोशिश करोगे। ऐसे ही जैसे, किसी भी और नाम की कहानी। जैसे ये मंजू यहाँ, वो मंजू वहाँ और वो मंजू वहाँ। देस के इस कोने से दुनियाँ के उस कोने तक। कुछ भी नहीं मिलता और जैसे मिलता भी है? कोढों के अनुसार? और ऐसे ही उनकी ज़िंदगी की कहानियों के उतार-चढाव। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे किसी भी बीमारी के उतार-चढाव? अलग-अलग रंग की गोटियाँ जैसे? मगर, जिनके रंग और उनको चलाने के तरीके सिर्फ इन राजनितिक पार्टियों या डाटा इक्क्ठ्ठा करने वाली कंपनियों को पता हैं। मतलब, ये आपका डाटा आपकी जानकारी के बिना पैदाइशी ही इक्क्ठ्ठा करना शुरु कर देते हैं। और फिर उस डाटा को अपने बनाए प्रोग्राम्स के अनुसार चलाते हैं। वो सब भी आपकी जानकारी के बिना। इस सबमें आपकी IDs बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। 

यूँ तै कब कोण पैदा कराणा सै अर कब बीमार, अर कब मारणा सै, वो भी इनके कब्जे मैं?

वही तो मैंने कहा। यही नहीं। कब किसी की शादी करवानी सै और किससे? और कब तुडवाणी सै? किसके, कितने बच्चे पैदा होने देने सैं और किसके किस तरह की बीमारी या एक्सीडेंट कहाँ-कहाँ करने सैं। फेर उनके सामान्तर भी घडणे सैं। अब ये सामान्तर अच्छे हैं, तो, तो सही। मगर अगर ये सामान्तर घढ़ाईयाँ बूरे वाली घडणी सैं तो? जिनके घड़ी जाएँगी, उनका नाश। और इससे इन राजनितिक पार्टियों को धेला फर्क नहीं पड़ता। इसलिए दुनियाँ के इस साँग या अजीबोगरीब रंगमंच और इसे चलाने वालों के बारे में थोड़ा बहुत तो जानना जरुरी सै। 

Thursday, February 13, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 28

 शब्दों की महिमा 

हर शब्द कुछ कहता है। हर शब्द के पीछे कोई कोड है। जैसे?  

Late या Early या on time ? 

आपने अपने किसी घर के इंसान की फोटो लगाई हुई है, जो अब इस दुनियाँ में ही नहीं है? क्या लिखा है उस पर? कौन लेके आया था उसे? सोचो, वो "दिखाना है, बताना नहीं" के अनुसार क्या है? Late? और तारीख के नंबर? फोटो कौन-सी और किस वक़्त की है? कोई सुन्दर-सी है या? क्या पहना हुआ है? फोटो पे कोई माला या कुछ और भी पहनाया हुआ है? जानने की कोशिश करें?  

जाने वाला late था क्या? या आपकी ज़िंदगी में तो सही वक़्त पर आया था या थी? या शायद वक़्त से पहले ही? फिर ये late क्या है? ये जो अब उस घर में बच गए, उनको late बताना या बनाना तो नहीं? या उस घर में होने वाले किसी खास या अच्छे काम को या लाभ या शुभ को? जो नंबर उस पर लिखे हैं, उनके अनुसार? मगर कौन बता रहा है? जाने वाला तो है ही नहीं। उस फोटो को लेकर कौन आया था? वो फोटो, कहाँ और किसने बनाई? वो उसे लेट कर गया? या घर के बाकी सदस्यों को? या किसी अच्छे या शुभ या लाभ वाले काम को? क्या पता खुद लाने वाले को या बनाने वाले को भी कुछ नहीं पता? 

वो तो खुद जाने वाले के जाने से दुखी हो? और सोच रहे हों, की इतने जल्दी कैसे चले गए? मगर लाने वाले का मतलब ये है, की उसने उसे लेट बना दिया? किसी तरह की अड़चन खड़ी कर दी, उसके रस्ते में? या उस घर के रस्ते में? कैसे संभव है? कोई अपने ही इंसान को कैसे लेट बना सकता है? या दुनियाँ से ही ख़त्म कर सकता है? सोच भी नहीं सकता शायद?    

आपने उस फोटो को कहाँ रखा या किसी ने आपसे कहकर रखवाया? अभी तक वो फोटो उसी जगह रखी है या उसकी जगह यहाँ से वहाँ या कहाँ बदली हो गई? खुद की या किसी ने कहा? माला वाला भी चढ़ा दी उस पर या ऐसे ही है? माला है? तो किस रंग की या कैसी या क्या कुछ है उस माला में?

इसे Show, Don't Tell बोलते हैं। दिखाना है, बताना नहीं। और इसके पीछे कोई न कोई राजनितिक पार्टी होती है, गुप्त तरीके से, उसकी सुरंगें।      

बदल दो इन लेट वाली फोटो को। इनकी जगह उस इंसान की कोई अच्छी सी फोटो लगा लो। उसपे जाने वाले को लेट नहीं लिखना और ना ही उसका दुनियाँ छोड़ने का दिन। वो सिर्फ उसका दुनियाँ छोड़ने का दिन नहीं था, बल्की, शायद आपकी या आपके घर की राह में रोड़े या अवरोध खड़ा करने का दिन था। खासकर, जब वो इंसान दुनियाँ से बहुत जल्दी गया हो। बहुत होंगी शायद आपके पास, उससे बेहतर फोटो। अगर कहीं कोई अजीबोगरीब माला वाला पहनाई हुई है, तो उसे भी हटा दो। शायद कुछ बेहतर हो। 

ऐसी ही कितनी ही रोज होने वाली छोटी मोटी-सी बातें या चीज़ें राजनितिक Show, Don't Tell या दिखाना है, बताना नहीं, होती हैं। और दिखाना है बताना नहीं, सिर्फ दिखाना या बताना नहीं होता, वैसा सा कुछ करना भी होता है। उन्हें समझने की कोशिश करें। वो चाहे आपका किसी के पास आना या जाना हो या कोई भी, किसी भी तरह का काम करना। चाहे आपका कहीं किसी से बोलना हो या बोलना बंध करना। या झगड़ा करना या कहीं किसी के पास बैठना। या बीमारी या मौत ही क्यों ना हो। सारा संसार छुपे तरीके से इन राजनितिक पार्टियों ने रंगमच बनाया हुआ है। और आपको लगता है की आप खुद कर रहे हैं? धीरे-धीरे समझोगे की आप खुद कर रहे हैं या आपसे कोई छुपे तरीके से करवा रहे हैं।  

बुरे को भुलाकर अच्छे को याद रखना, मतलब, अच्छी ज़िंदगी की तरफ बढ़ना। किसी भी इंसान का जन्मदिन अच्छा होता है। मरण दिन? उसे याद रखो की उस दिन वो इंसान हमें छोड़ गया। यूँ नहीं की वो लेट हो गया। और यूँ किसी फोटो पर तो बिलकुल नहीं लिखना। ऐसी फोटो को किसी ऐसी जगह बिल्कुल नहीं लगाना, की आते जाते या दिन में कितनी ही बार आप उसे देखते हों। कभी जन्मदिन या शादी वगैरह की फोटो भी लगाई है ऐसे? 

किन घरों में जन्मदिन, शादी या खुशियों वाली फोटो मिलेंगी? और किन घरों में बिलकुल सामने ऐसे, गए हुए लोगों की? वो भी लेट और वो तारीख लिखकर? ये मुझे पहले कहीं हिंट मिला था और फिर आसपास के घरों में देखा तो? छोटे-छोटे से घर और सब सामने "लेट" कैसे सजाए हुए हैं? कई-कई घरों में तो कई-कई लेट? जैसे कोई शुभ-मुहरत लेट? या जाने वाला कहीं किसी और भी लेट कर गया? वो भी खुद अपने किसी इंसान को। और आपने वो फोटो भी सजा दी? वही लेट और तारीख या शायद किसी खास माला के साथ?   

कुछ अजीबोगरीब से किस्से जानते हैं आगे। 

जैसे 

मोदी? बहु? साला?

बहु? अकबर? पुर?

क्या कोड है ये? 

या वीर? 

या AV? 

या नीलकंठ?

या F मिरर इमेज?  

या ??????????? कितने ही या ???????????

Friday, February 7, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 27

 महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे, फेंकम-फेक?

बोलने और बताने के तरीके और सभ्यता-संस्कृति? बोलने और बताने के तरीके या सीधे-सरल लोगों को भड़काने के? बावलीबूच बनाने के? 

Highly offensive. But this is "ठेठ हरयाणवी", "खड़ी बोली", या "लठमार बोली" Or better to call that "political mix mischief" राजनीतिक गुंडागर्दी या उग्रवाद बोली? यूँ लागै सै, यो Stand up commedy यहीं से निकली है। Read further at your own risk.

भाई रै, अमरीका तै अमरीका सै। अवैध तरीके तै अमरीका जाण आले दुनियाँ के दादा नै काढ़ भगाए आपणे देस तै। 

मेरे तै नूं समझ ना आंता, ये ईतणे-ईतणे पीसे देके, या घर जमीन बेच कै, के डोके लेण जावेँ सैं अमरीका? के उनके कासण माँजन, झाड़ू काढ़ण अर बाथरुम साफ़ करण जावेँ सै उड़े?

कुतरुओ, उह खातर उड़ै काम आली बाई की जरुरत कोणी। अर काम आली बाई बी, थारे आले हालाँ भाँडे माँजते, झाड़ू लगाते, गोबर सर पै ढोते या पाणी ढोंते ना दीखैं, जुकैर थारैअ। जब तै कहूँ सूँ, थारे तै भी अक अपडेट कर लो, आपणे घर के छोटे-मोटे एप्लायंस नै। ना तै ये घणे श्याणे घर आली की बजाय, काम आली धरे पावैंगे थारअ। 

फेर करते रहियो, पाणी-पाणी, इह आपणे FIFA की तरैया?  

और FIFA का Lego या Lago? 

यूनिवर्सिटी का कौन सा घर बताया यो?
Mar-a-Lago?
Florida? 
या White House? 
Pink House? 
कम से कम बाहर से?  
समुंदर से घिरा हुआ?
या 
डालमियाँ विभाग से? 
(हर रँग कुछ कहता है? आगे किसी और पोस्ट में) 

ईब दादा समँदर तै घिरा हुआ मत सोच जाईयो। 
सैक्टर-14 मैं भी मेरे पड़ोस मैं एक समंदर था। 
अब पता नहीं यूनिवर्सिटी रहता है या कहाँ?
मेरा क्लासमेट और फिर colleague वहीं एक डिपार्टमेंट में। 
वैसे, सैक्टर-14 का Media Culture क्या था? 
आगे किसी और पोस्ट में
 
और ये कैसी ईमेल है?       


 

अर यो metaphore आला अमरीका, MDU रोहतक मैं धरा बताया? White House भी उड़ै ए-सी कितै बताया? अर Mar-a-Lago भी? यो Donald Trump भी उड़ैअ सी रहंता बताया? पर पाछै-सी सुणा था, अक Melania Trump उड़ै ना रहंति? बेरा ना बडे आदमियाँ के कितने और किसे-किसे घर होवेँ सैं? और दुनियाँ भर मैं कीत-कीत, अर किसे-किसे साँग रचे जां सैं? कितनी आपणै नाम की metaphoric गोटी, कीत-क़ित धर दें सैं अंडी? उनके White House अर Mar-a-Lago, अर थारे बावली बूचां के? खँडहर? वो भी पड़ दादा के? हो नै बावली बूच?

अर वैं? 

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 26

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे, फेंकम-फेक?

बोलने और बताने के तरीके और सभ्यता-संस्कृति? बोलने और बताने के तरीके या सीधे-सरल लोगों को भड़काने के? बावलीबूच बनाने के? 

Highly offensive. But this is "ठेठ हरयाणवी", "खड़ी बोली", या "लठमार बोली" Or better to call that "political mix mischief"? यूँ लागै सै, यो Stand up commedy यहीं से निकली है। Read further at your own risk.

Food Poisoning? 

उल्टी लाग री सैं,  बालक होउ सै के? 

उत अर उतणी कहण, इसे-इसे आग लाणियाँ नै के कहवैंगे? 

उल्टी लाग री सैं,  इह ताऊ कै। बालक होउ सै के? तोंद तो इह ढाल काढ़े खड़ा सै। 

साले, बड़े बुजुर्गां न भी ना बख्सते। के लुगाई फेर, अर, के लोग? 


Food adulterants? 

बालक फैंक दिया, कौण-सा लाग रा था रै?  

उत अर उतणी कहण, इसे-इसे आग लाणियाँ न के कहवैंगे? 

बालक फैंक दिया साँड़ नै, कौन-सा लाग रा था रै?  


Designed and targeted accident? 

मेरा भाई अर वा कुतिया लाइव इन रवें थे। 

उत अर उतणी कहण, इसे-इसे आग लाणियाँ न के कहवैंगे? 

मेरे कुत्ते भाई नै, उह छोरी की टाँग तोड़ दी। स्कूटी पै थी, अर गाड़ी न ठोक दी। स्कूटी-सी हवा ले री थी, स्टार्ट अ ना होवै थी। 

ज्यादा हो रहा है ना? 


Status 

अंडी उनकै चोंतरैं पै बैठ कै न औकात बतावे सैं, उन्हैं की? 

साले बहाणा के खेत नुलावें सैं। अर, बात औकात की? वो भी जब गाम मैं पड़े सैं, ईब तहि।     


Surgical Operation or Judicial Intervention? Operation Military?

सर्जिकल ऑपरेशन करना पड़ा। नूं बना के बात बनै थी। हरयाणै आले नुएँ घर-घर तै फ़ौज मैं थोड़ी अ सैं? 

अर भाई पुलिसए भी तै सैं? 

हाँ, सुण ली तेरी भी। पुलिसए भी तै सैं। 


And sophisticated? What the hell is that?


हरियाणवीं, वा भी लठ मार, आपणे राजनीती के ताउवां अर ताईयाँ की, माँ, काकियाँ न समझाण की?

सुण-सुण क करते रहो, वाह ला दी भाई कती खड़ी आग, वाअ भी बिना पैट्रोल गेरेँ। ईब कई दन लागैंगे बुझाण मैं। 

एक-आध फेर इसे-इसे भी डायलॉग मिल जांगे, जुकर कोए दादी अपनी छोटी-सी पोती न कहवे, जो सड़तोड़ भाजी जा सै, नून मत जाईये, उल्टी आ, ना तै पीट दूँगी। हाऊ सै उड़ै, अर लठ लिए बैठा सै।  

या फिर छोरी उलटी होवै सै अक? सोड़-सी भरवा क मानैगी?   

और सोचते ही रह जाओ, इतने छोटे बच्चे को ये सब समझ आ रहा होगा क्या? क्यूँकि, वो तो फिर भी आगे ही आगे भागती जा रही है। 

फेर इसे-इसे भी मिल जांगे। आहें बेबे, तैने तै सही हरयाणवीं आवै सै। हाम तै सोचा करते तैने हरयाणवीं ना आंती। 

सिर्फ हरयाणवीं? यो जो हरयाणवीं कै नाम पै पढण लाग रे सो, इह नै हरयाणवी कहा करैं? इह नै सुणा सै, राजनीतिक आग आली हरयाणवी कहा करैं या वो जेलर साहब हरयाणा की जेलाँ आली या आपणे हरयाणवी पुलिसियां आली? गॉल तै जणू, लाडू से फैंकण लाग रे सैं मैरेबटे। 

ना रै ईब तै ना थाणे मैं, अर ना जेल मैं, इसी-इसी बोलते सुणते। साला यो जेल अर थाणे तो आड़ ए धरे लागे, इन राजनीती आले गामां मैं? जणू इसी-इसी बोली तै आग लाएं पाछे तै ये ए जेलर, अर पुलिसिये बणगे? बावली बुचो, आजकाल सुणा सै, वैं भी थोड़े-भोत सुधर लिए। थाम कद सुधरोगे?          

कुछ-कुछ ऐसे ही शायद, जैसे महारे बावली बूच थोड़ी-सी अंग्रेजी बोलण आले तै ऐं, इम्प्रेस हो ज्यां सैं? या फेर कहवैंगे, घणी अंग्रेजी मत काट। बेरा सै तैने अंग्रेजी आवे सै। न्यूँ ना थोड़ी बहुत सीख लूँ। अर भासा इम्रेस होण खातर ना होंति, समझण अर समझाण तही हो सै।     

बाकी यो बेरा ईब पाट्या सै, खड़ी अर लठमार बोली के हो सै। अर, हाम तै सोच्या करते, हाम ते पैदाइसी ठेठ हरियाणवी साँ? बोलणी ईबअ सीखी-सै सायद? राजनीती करणीयाँ आलयां की खड़ी आग लाण आली, अर लठ मार बोली समझे पाछै।   

Too much हो गया ना? इसीलिए लिखा था ऊपर, अपने रिस्क पर ही पढ़ें आगे। मेरै तो जो हज़म-सा ना होवे, वो इह ढ़ाल कढ़ा करै बाहर, लिख-लिख क फेंके जाओ। पता नहीं कहाँ-कहाँ का देखा, सुना या समझा, इक्क्ठ्ठा करके पेलती रहती हूँ।   

Sunday, February 2, 2025

महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 26

Common Sense और महारे बावली बूच? या? महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?

"महारे बालकां धौरअ थोड़ा बहुत पीसा भी सै, अर थोड़ी बहुत ज़मीन भी। करोड़ों के मालिक होते हुए भी रहते हैं गई-गुजरी सदियों में।" 

सुना-सुना सा लग रहा है? चलो करोड़ों के ना, लाखों के मालिक तो होंगे? मगर, उनकी सोच को कौन बदलने आएगा? उसपै, बावली बूच बणाण आले श्याणे?

Water Purifier 

जैसे बाहर के या गंदे पानी से कोई खतरा नहीं, चाहे उसके नाम पे राजनीती अपने उफान पे हो? घर पे water purifier हो तो भी चलाना नहीं? क्यों? बावली बूच किह नै कहा ए करैं? 

आपके ये नेता भी पीते हैं, कभी ऐसे ही कहीं का भी कोई भी पानी? नौटंकी चाहे वो कैसी भी करलें? हमारे गरीब नेता (गरीब नेता?) फिर गंदे पानी को मुद्दा कैसे बनाएँगे?  

झाड़ू? 

भारत की राजनीती की सुनहरी, सफ़ेद और काली झाड़ू? और भी कितने ही रंग होंगे? अपने यहाँ वो कुछ भी प्रयोग करें, मगर? मगर बावली-बूचां के अड्डा पै तो? राम, राम, राम। फिर अपने नेताओं की राजनीती के अहम मुद्दे क्या होंगे?  

ब्लाह जी वो तो फेर भी ढूँढ लावेंगे। 

कैसे? बिजली के एप्लायंस एक के बाद एक ख़राब करके?   

वैसे हम हैं मजेदार लोग। हमें कोई भी insecure करके, अपना कैसा भी आदमी हमारे घर घुसा दे। बताओ ये दिक्कत, वो दिक्कत, काम वाली तो चाहिए? घर वाली नहीं, काम वाली? अब वो काम वाली घर का कैसा भी बेड़ा गरक करै चाहे? मगर छोटे-मोटे रोजमर्रा के एप्लायंस अपडेट नहीं करेंगे? भला, खराब होण पे ठीक कैसे होंगे? बताओ? आज ज्यादातर घरों में गाड़ियाँ हैं। बैलगाड़ी क्यों नहीं खरीद लेते? गाड़ी खराब होने पे ठीक थोड़े ही होती हैं? और घर के ये छोटे-मोटे एप्लायंस तो 20 -30000 से शुरु हो जाते हैं। कुछ तो शायद इससे भी कम।  

आप पढ़ाई में ठीक ठाक हैं? या शायद आप का बच्चा?

वो आपको पढ़ाई से डरना सीखा देंगे और किताबें, वो तो बिगाड़ती हैं? ना ज्यादा खुद पढ़ना और ना अपने बच्चों को पढ़ने देना?

लैपटॉप? 

अरै कोई काम ना सै इसका। एक तरफ राख भाई इह नै। इह तै बढ़िया तै ताश, हुक्का और कबूतर जैसे खेल सैं? थोड़ा और आग ए बढ़ना हो तै दारु, जुआ और ड्रग्स लेणा शुरु कर दो। 

ऑटोमैटिक वॉशिंग? 

फेंकों इह नै या तोड़ दो। या तो अमरीकन सै। विदेसी कंपनी सै भाई यो। देसी लावांगे। 

एंडी सैमसंग ले आए। वा तै इनकै बाप नै बणा राखी सै? घणी देसी? घर मैं धरी नै विदेसी कै नाम पै तुड़वा दो। अर देसी कै नाम पै पीसे फालतू पड़े हांड़े सैं?  

डिश वॉशर? 

अर के डिश-फिश लाग री सै? घणा पाणी लेगी और इतनी महँगी। क्यों चक्कर मैं पड़ै। लुगाई-पताई के करैंगी फेर? ना तै काम आली ला ले। थोड़े सै मैं कर देगी। महँगी? कितनी?  

बावली बूचाँ नै ना बेरा ज्यादातर नए अपडेट या मॉडल पानी ही नहीं बल्की बिजली भी कम प्रयोग करैं सैं। अर ज्यादातर तकरीबन उतने ही महँगे सैं, जितने पुराने मॉडल। कोई खास फर्क नहीं।  

मानसून वेड्डिंग।

काम आली ब्याह लाए भाई, भकाई मैं? AI आल्याँ नै भी ड्रामें का कती नास-सा तार दिया। दे झमा-झम। अर ऊप्पर तै बिजली, कती कड़ा कड़ कर री। ब्ला डुबोअगा। भुण्डा अँधेरा कर दिया डाकियाँ नै। अर आड़ै बे-बे हर उलझा दी, ब्ला आपणअ आले अंगूंठे अर ऊँगली लावान्वागें। रै वो थापे कै नाम पै। ब्ला माहरै आले खास छपाई के पेपर पै लावान्वागें। 

कती मानसून वेड्डिंग बनादि?   

वैक्यूम क्लीनर? 

भाई फेर ब्याह ना होवै। आपणी झाड़ू ए बढ़िया सै। बता, इन नेता-वेतां के तो बेरा ए ना कै, कै ब्याह हो ज्या सैं। साले एक तै लेटेस्ट एक ऑटोमैटिक मॉडल धर रे सैं आपणै घराँ। के गाडी, अर के घर के छोटे-मोटे एप्लायंस। अर ब्ला थारे फेर ब्याह ना होंवें? बावली बुचो, कैदे वै उल्टा तै नाश ना करण लाग रे? एक बै इतना तै सोच लो। जित घणी सुविधा हों, सब ठीक-ठाक हो। मिलजुल कै सारे ढंग सर रहते हों, उड़ै ब्याह बढ़िया ढाल के होया करैं या बावली बूच बणे अर पिछड़े रहण पै? ब्ला घराँ धरा भी प्रयोग ना करना। अशुभ बताया? 

बैड, मैट्रेस्स

अरै यो माँ का बैड मैट्रेस्स उड़े बैठक मैं धर, सांडा खातर। चारपाई बढ़िया हो सै बूढ़्यां खातर। 

के कर लो इसा-इसां का? कोए आपण माँ-बाप नै सुख-सुविधा देते ना हारते। अर इण झकोईयाँ धौरए, इसे-इसे जानवर आवैं सैं, जो इनका भूंड़ां ए भूंडा चाहवें? जिह आदमी नै इतने सालां मैट्रेस्स पै सोण की आदत पड़ री हो, वो बुढ़ापे मैं चारपाई पै कित-कित दर्द तै टस-टस करैगा? 

ना करए भाई, महारए आले तै आपणे लाडलां धोरै, जुकर राख लें, नू ए चुपचाप पड़े रहं। कोए इण बावली बूचाँ नै कुकरै भका जा। ऊँ चाहे पाहं दबवालो, किमै करवालो, किमै मँगवा लो। पर भकाई पै ब्ला भूंडे घणे। करे-धरे पे पानी फेर दें।  

इसे-इसे, रोज-रोज के कितने अ किस्से-कहाणी लिख लो।   

ऐसे से ही हाल हमारे पढ़े लिखे बड़े-बड़े संस्थानों के हैं। खुद वो कैसे भी घरों में रहें। अपने ऑफिसों में कितने ही लेटेस्ट उत्पाद प्रयोग करें। मगर, अपने साफ़-सफाई करने वाले कर्मचारियों या और भी कितने ही छोटे-मोटे कर्मचारियोँ को वही पुराने जमाने के झाड़ू मॉडल और ठेकेदारी शोषण प्रथा में उलझाए मिलेँगे। आखिर हमारी राजनीतिक पार्टियों के मॉडल यही हैं, अपनी जनता के लिए।