एक दिन ऐसे ही बात ही चल रही थी स्कूल बनाने की। और रितु ने कहा, ये है ना सँभालने के लिए। मैनेजर हमारा। और मुझे भी लगा, बात तो सही है।
और कहीं पढ़ने-सुनने को मिला, मैनेजर? स्वीपर लगा लो। उसी लायक हैं ये।
हैं ये। क्यूँकि, आसपास के कुछ और बच्चों की भी बात हो रही थी, कुछ और काम सौंपने की उन्हें।
मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कितना कुछ तो उल्टा-पुल्टा, यहाँ-वहाँ, रोज पढ़ने, सुनने या देखने, समझने को मिलता है। हर कमेंट गौर करने लायक नहीं होता, यही सोचकर हम कितना कुछ इग्नोर करते हैं? शायद सही भी है?
भाभी के जाने के बाद, जिस तरह से हालात बदले या कहो की जबरदस्ती जैसे बदले गए। रोज-रोज के कारनामे देख, सुन या समझ, ऐसे-ऐसे कितने ही कमेंट, जैसे साक्षात से होते नज़र आ रहे हों। मगर, आप फिर और ज्यादा इग्नोर करने लगते हैं। ना सिर्फ ऐसे कमैंट्स को, बल्की, ऐसे-ऐसे, जलने-भुनने और दूसरों का बुरा चाहने वालों को भी। सिर्फ ऐसा चाहने वालों को? या इस बदलाव को जबरदस्ती जैसे लाने की कोशिश करने वाले भी? ऐसे वक़्त में, सही शायद यही रहता है, की अपना काम और लगन से करो और आगे बढ़ो। आप बढ़ोगे, तो साथ वाले भी कहाँ और कब तक पीछे धकेले जाते रहेंगें?
इस पीछे धकेले जाने की कोशिश की तह में एक विचार खास लगा। वो है दोगलापन। कुछ-कुछ ऐसा ही, जैसा पीछे पोस्ट में लिखा। और उसमें आप अकेले टारगेट नहीं हैं। या सिर्फ अकेले आपका परिवार टारगेट नहीं है। जो कोई समाज, आगे बढ़ती हुई दुनियाँ से पीछे रह रहा है, मान के चलो की वहाँ का सिस्टम और वहाँ की राजनीती उसके लिए ज़िम्मेदार है। वो छोटा-सा स्कूल जो कल तक खुद मुझे मज़ाक-सा लग रहा था, या छोटा-सा काम लग रहा था शायद? ना जाने क्या कुछ दिखा, बता और समझा गया? इतने आसान-से और छोटे-से काम पे कितने रोड़े और क्यों? मारकाट तक? धोखाधड़ी और छीना-झपटी तक?
काम तो और भी बहुत हैं। सबसे बड़ी बात, आपने खुद अपने काम को इतना diverse कर लिया है की अकेले तो हो ही नहीं सकता। कितनों को ही लगा दो, कितनी ही तरह के कामों पर। कहना तो ये भी कितना आसान है ना? शायद हाँ और शायद ना? Earn and Learn या Learn and Earn प्रोग्राम्स कितने फिट बैठते हैं ना? ऐसी-ऐसी, छोटी-मोटी सी समस्यायों के लिए? ऐसा नहीं है की लोगों को कुछ आता जाता नहीं। बस, थोड़ी-सी दिशा देने की जरुरत है? दुनियाँ भर की युनिवर्सिटी के Innovative Centre, Entrepreneur Centre, Tech Innovation Centre, Start up hubs, Arts and Crafts Centre, Career Studios, Interdisciplinary Innovation Centre, Science Parks, Science City, Food Tech and Agri Business Hubs, Multilingual Lab and Computer and AI Applications, Imagine। और भी पता नहीं, कैसे-कैसे नाम और मानव संसाधनों को दिशा देते और गाइड करते ये खास तरह के सेंटर।
ये कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे किसी बच्चे को बता, समझाकर और थोड़ा-सा उसकी सहायता कर या शायद सिर्फ पास बैठकर, कितने ही मुश्किल-से लगने वाले विषय (उसके हिसाब से) पर भी, बड़ी आसानी से कोई मॉडल बनवा सकते हो। मगर अकेले? शायद उससे भी आसान से विषय पर, कई दिन जद्दो-जहद कर या तो गुस्से और फ़्रस्ट्रेशन में फाड़ देगा या ढंग से पूरा नहीं कर पाएगा? माहौल, मुश्किल को आसान बना देता है और आसान को मुश्किल।
कई बार शायद आपको खुद नहीं पता होता की आप ये भी कर सकते हैं और ये भी। ये भी और शायद ये भी। और इन सबकी खिचड़ी भी पका सकते हैं। क्यूँकि, कहीं न कहीं वो सब आपने किया हुआ है। कहीं हॉबी, तो कहीं एक्स्ट्रा कैरिक्यूलर। फिर आपका अपना फ़ील्ड तो है ही। ऐसा ही शायद सबके साथ है। कुछ भी ना करने वालों ने भी कुछ ना कुछ, कभी न कभी तो किया ही हुआ है। और ना भी किया हुआ हो तो रुची तो कहीं न कहीं सबकी होती हैं। मानव संसाधनों का प्रयोग करने की जरुरत है। दुरुपयोग करने वाले तो बहुत मिल जाएँगे।