महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे? 28

  शब्दों की महिमा  हर शब्द कुछ कहता है। हर शब्द के पीछे कोई कोड है। जैसे?   Late या Early या on time ?   आपने अपने किसी घर के इंसान की फोटो ...

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Friday, August 16, 2024

आजादी दिवस? गोली या गोला दिवस?

Independence Day?

मुझे तो आज़ादी और बेड़ियों का मतलब समझ, 2019 में ही आ गया था। तारीख क्या थी? और महीना? उसके बाद, उसी महीने में अगले साल कुछ खास था? खैर। इस दौरान जो दुनियाँ देखी, मुझे लगता है दूर से ही सही, वो एक बार तो जरुर सबको देखनी चाहिए। क्यों? अगर आप रिसर्च को खास समझते हैं तो शायद अपने पेपरों को ही या तो रद्दी के हवाले कर देंगे। या उनमें थोड़ा-बहुत तो जरुर कुछ और बेहतर करने का सोचेंगे। मगर रिसर्च ही क्यों?

आओ कुछ-एक भाषण सुनें।    

रौचक भाषण, अगर जाती से परे थोड़ा देखें तो?



मुझे नेता-वेता या राहुल गाँधी कोई खास पसंद नहीं। मगर, एक-दो सत्यपाल मलिक के भाषण सुने हैं। काफी रौचक होते हैं। कुछ एक पॉइंट्स खासतौर पर जानने लायक। थोड़े बहुत मानने लायक भी शायद। जैसे इस भाषण में शिक्षा को लेकर। 
शिक्षा पे जीतना ध्यान दोगे, उतना ही आगे बढ़ोगे। जीतना इससे दूर जाओगे, उतना ही पिछड़ते जाओगे। ये मैंने जोड़ दिया।   

"गोली अगर आए, तो उसका जवाब गोले से देना"

गोली से आप क्या समझते हैं? 

और गोले से?

हमारे मौलड़ जवाब कैसे देंगे? हथियारों से? और फिर?

ज्यादा पढ़े और उसपे कढ़े हुए लोग कैसे देंगे?    

गोली के बारे में बात बाद में। पहले गोला समझें थोड़ा?

गूगल बाबा से पूछें?  

AI (Artificial Intelligence) कभी-कभी बड़े रोचक परिणाम देती है।  
जैसे किसी साइड की तरफ से कोड-डिकोड में सहायता? 
कैसे पढ़ेंगे इस तस्वीर को आप?

आपके आसपास कोई गोले बेचने आता है क्या?
या गोली बेचने?
गोली तो शायद आप दूकान से लाते हैं? Pharma या Medicine Shop? 
आपके आसपास किन-किन की हैं, वो दुकानें?
एक ही दवाई अलग-अलग दूकान से लेकर देखो। 
किसी या किन्हीं ऐसी दवाईयों में कुछ फर्क मिलता है क्या?

ऐसे ही नारियल पानी कहाँ मिलता है?
या पानी वाला नारियल? 
या किससे मिलता है?
और वो देने वाले कहाँ से लाते हैं?
 
और गोला?
आपके आसपास आता है कोई बेचने?
कौन? कहाँ से? 
एक गोले के कितने टुकड़े करता है?
और कितने में मिलता है?
पूरा गोला कितने का और एक टुकड़ा कितने का?
और पानी वाला नारियल कितने का?
सूखे गोले में और पानी वाले नारियल में क्या फर्क है?
बिमारियों से जोड़कर देखो।     

ये सब जानकर? अब ऊप्पर वाली गूगल की गूगली वाली तस्वीर को समझने की कोशिश करो। शायद कुछ खास बिमारियों के किस्से-कहानी समझ आ जाएँ? सम्भव है? कोशिश तो करके देखो। आप जो कोई खाना या पानी ले रहे हैं, बिमारियों के काफी राज उन्हीं में छिपे हैं। उसके बाद दवाईयों या हॉस्पिटल तक जाते हो, तो बाकी कोड वहाँ मिल जाएँगे। 

उससे भी आगे, अगर कभी पहुँचना पड़े तो? जब तक बहुत सारे कोड और उनके मतलब ना पता हों, तो बहुत कुछ जानना तो मुश्किल है। मगर, खास तेहरवीं तक के वक़्त में, अगर कोई नेता या अभिनेता आ फटके, तो तारीख और वक़्त अपने आप काफी कुछ गा रहा होगा। कहीं-कहीं तो शायद ऐसा लगेगा, की इस साँप के डंक का दिन आज का है? ये साँत्वना देने आया है या अपने किन्हीं कांडों पे मोहर ठोकने जैसे? अजीब लग रहा है, ये सब पढ़कर? मगर राजनीति के इस धंधे में कुछ ऐसा-सा ही बताया। और बहुत बार तो जरुरी नहीं की नेता तक को कुछ ऐसा पता हो। क्यूँकि, वो महज़ एक proxy भी हो सकता है, किसी तरफ के किसी खास किरदार की। वो भी उसकी अपनी जानकारी के बिना। 

चलो आपने In Depen Dence का गोला या गोली फेंक ली हो, तो अगले भाषण या शायद किसी इंटरव्यू को देखें? सुने? और थोड़ा समझने की कोशिश करें?   

Saturday, August 10, 2024

किताबवाड़ा, बैठक या गतवाड़ा?

मतलब, जमवाड़ा? जमघट? किताबों का? 

मगर, राजनीती ने उसकी दुर्दशा करके यूँ लगता है, जैसे, गतवाड़ा बना दिया हो। बहुतों को शायद गतवाड़ा क्या होता है, यही नही मालूम होगा। हरियाणा और आसपास के राज्यों में, गरीब लोग गाएँ-भैंसों के गोबर के उपले बनाते हैं। वो भी हाथ से। फिर, उन उपलों को सूखा कर, स्टोर करते हैं। गरीब हैं, तो स्टोर करने तक को कोई जगह नहीं होगी, जहाँ उन्हें बारिश से बचाया जा सके। तो उपलों को खास तरकीब से तहों पे तहें रख कर, बाहर से गोबर से लेप देते हैं। उसे गतवाड़ा कहते हैं। ये गोबर से बने उपले, गैस की जगह प्रयोग होते हैं। गतवाड़े को ठेठ हरियाणवी में बटोड़ा और उपलों को गोसे भी कहते हैं।  

एक कहावत भी है, अगर कोई कुछ ढंग का बोलने की बजाय या दिखाने या समझाने की बजाय, या करने की बजाय, अगर फालतू की बकवास करे तो? हरियाणा में उसे "नरा बटोड़ा स। बटोड़े मैं त गोसे ए लकड़ेंगे।" भी बोला जाता है। राजनीती के अपमानकर्ताओं के कुछ ऐसे से ही हाल बताए। ये, ईधर के अपमानकर्ता और वो उधर के। इन हालातों को सुधारने के थोड़े शालीन तरीके भी हैं। 

जैसे, गतवाड़े अगर किताबवाड़े हो जाएँ? तो क्या निकलेगा उनमें से? तो चलो मेरे देश के खास-म-खास महान नेताओ, और कुछ नहीं तो अपने-अपने नाम से या खास अपनों के नाम से ही सही, कुछ एक किताबवाड़े ही बनवा दो? जहाँ से "फुक्कन जोगे", "अपमानकर्ता गोसे", नहीं, ज्ञान-विज्ञान के पिटारे निकलेंगे, किताबों के रुप में। और आसपास के बच्चों, बड़ों या बुजर्गों को इक्क्ठे बैठने के लिए या आपसी संवाद के लिए, या कुछ नया या पुराना सीखने के लिए, न सिर्फ जगह मिलेंगी, बल्की समाज का थोड़ा स्तर भी बेहतर होगा। उन्हें किताबवाड़े की जगह बैठक भी बोल सकते हैं। जहाँ हुक्के, ताशों या तू-तू, मैं-मैं की बजाय, थोड़ा बेहतर तरीके से संवाद हो। वैसे, जिनके पास थोड़ी बड़ी बैठकें हैं या जो अपनी बैठकों को खास समझते हैं, वो भी उन्हें कोई खास नाम देकर, ऐसा कुछ बना सकते हैं। 

ऐसे ही शायद, जैसे भगतों या शहीदों के नाम पर सिर्फ पथ्थरों की मूर्तियाँ घड़ने के, वहाँ ऐसा कुछ भी हो? तो शायद लोगों को ऐसी जगहें ज्यादा बेहतर लगेंगी।    

"चलती-फिरती गाड़ी, कबाड़ की। लाओ, जिस किसी माता-बहन ने कबाड़ बेचना है। कबाड़ लाओ और नकद पैसे लो। चलती-फिरती गाडी कबाड़ की।" अब ये क्या है?

किताबों पे या इनके आसपास के विषयों पे, जब कुछ ऐसा लिखा जाता है, तो जाने क्यों, बाहर कोई ऐसा-सा बंदा जा रहा होता है। या फिर, "काटड़ा बेच लो।"  कुछ भी जैसे? है ना :) 

Friday, August 9, 2024

Revolving around base is our system?

What kind of base is that?

आधार केन्द्रित? मूल? जिसपे ब्याज भी लगता है? और जिसका टैक्स भी कटता है? और? अगर आप इनके अनुसार ना चले, तो टैक्स भी भारी-भरकम लगता है।     

जहाँ पढ़ने वालों को क्लासों से, लैब्स से बाहर निकालने की कोशिश होती हैं। पढ़ाई-लिखाई या कैरियर ओरिएंटेड लोगों को प्रोफ़ेशनल जोन से ही बाहर धकेलने की कोशिशें होती हैं। जाने कौन-से मैट पे और कैसे-कैसे तरीकों से? जैसे, उस खास किस्म के मैट के बिना ज़िंदगी ही ख़त्म है। उसके बिना कुछ नहीं ज़िंदगी में। जैसे कुछ लोगों के हिसाब-किताब से एक उम्र तक शादी नहीं की, तो आपकी ज़िंदगी में है ही क्या? जैसे जिन्होंने शादी कर ली, उन्हीं की ज़िंदगी में सब है। शायद थोड़े से ज्यादा झमेले? और जो सारी उम्र ना करें, वो तो बिलकुल ही ख़त्म होंगे? अब किसी की शादी हो गई और बच्चे नहीं हुए या पैदा नहीं कर रहे, तो उन ज़िंदगियों में कुछ नहीं है? एक दकियानुशी दायरे में कैद सोच, जो चाहे की सब उनके दायरे वाली कैदों के हवाले रहें। उनके खास टैस्टिंग वाली लैब्स के टैस्ट से गुजरें। नहीं तो --- 

और इन खास सोच वालों के हिसाब-किताब से ना ही इन ज़िंदगियों को कुछ चाहिए। जो है वो सब उनके हिसाब-किताब वाली ज़िंदगियों को अवार्ड होना चाहिए। ऐसे लोगों को देख-सुनकर या झेलकर समझ ही नहीं आता, की तानाशाही के कितने रुप हो सकते हैं? क्यों कोई किसी के जबरदस्ती के स्टीकर उठाए घूमें? और क्यों सबकी ज़िंदगियाँ, इन खास वाले ठेकेदारों के हिसाब-किताब से चलें? 

हिसाब-किताब? बेबी को बेस पसंद है, वाले? या 

"जब वो मैट पे कुस्ती लड़ रहे थे, तो ये विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।"

--पे तो हमारी राजनीतिक पार्टियों की पॉलिसी चलती हैं?   

बताओ ऐसे-ऐसे हमारे युवा नेता, खास बाहर से पढ़े-लिखे, क्या और कितना देंगे समाज को? प्रश्न हैं, ऐसे-ऐसे कुछ अपने खास नेताओं के लिए। वो फिर इस पार्टी के हों या उस पार्टी के। ये खास "बेस पसंद सिस्टम" या "खास टच पैड सिस्टम", बाहर निकल पाएगा क्या, 23rd पेअर सैक्स क्रोमोजोम से ? महज़ XY के हॉर्मोन्स से? 44 क्रोमोजोम और भी हैं। ठीक ऐसे जैसे, इन खास जुआ खेलने वाले वर्ग के। सारे समाज को क्यों घसीटते हो वहाँ? ये कम पढ़ी-लिखी या तकरीबन अनपढ़ माएँ, चाचियाँ, ताई या दादियाँ, कैसे-कैसे पानी के खेल खेलते हो इनके साथ आप? और तो क्या कहें भाईचारे वाले इन नेताओं को, "गलत बात"। आप समाज को आगे बढ़ाने और उठाने के लिए हैं, ना की यूँ गिराने के लिए। 

ऐसे तो नेता को "अपमानकर्ता" से संबोधित करना पड़ेगा। फिर राजनीती के लिए सही शब्द क्या होगा ? "Insult to life, insult to death", के लिए एक हिंदी या हरियान्वी शब्द?                            

Sunday, August 4, 2024

अपडेट नहीं करोगे तो ?

 Somewhat like, "do so and so", ELSE  

धमकियाँ जैसे? या डरावे जैसे?

ऐसा ही कुछ है इस जुए के राजनीतिक धंधे में। और अपनी इन धमकियों या डरावों को कायम रखने के लिए ये पार्टियाँ कितनी ही तरह के साम, दाम, दंड, और भेद अपनाती हैं। 

पहले भी लिखा किसी पोस्ट में, हर अपडेट, हर इंसान के लिए सही नहीं होता। और ना ही जरुरी। हाँ। अपडेट लाने वालों के लिए जरुर होता है। नहीं तो, उनके नए-नए उत्पाद कैसे बिकेंगे? और कैसे उनके व्यवसाय या धंधे आगे बढ़ेंगे? नए-नए अपडेट या उत्पाद बाजार में लाने का मतलब ही, पुरानों को ठिकाने लगाना होता है। और जरुरी भी नहीं, की नया पुराने से बेहतर ही हो। या उस बेहतर में ऐसा कुछ भी, जिसकी आपको जरुरत तक हो। जैसे पीछे भाभी गए, तो अपराधीक मानसिकता वालों ने उनके लैपटॉप का ना सिर्फ विंडो उड़ा दिया। बल्की, उसमें ऐसा कुछ भी कर दिया, जिससे, जिसे मुश्किल से विंडो दुबारा इंस्टॉल करने तक का ही ज्ञान हो, कम से कम, वो उसे फिर से ना ठीक कर पाए।  

बिमारियों, इंसानों और रिश्तों के साथ भी ऐसा-सा ही है।